पलायन का शिकार पहाड़ी नौजवान
“सड़क अब पहुँची तुम गांव मेरे जब लोग शहर चले गए।“ रोटी, कपड़ा और मकान यह तीन मनुष्य जीवन की
मूलभूत आवश्यकताएँ है, जिनके बिना जीवन असंभव है। वर्ष 2000 में बने राज्य उत्तराखण्ड आज स्वयं बाबा केदार के आगे
हाथ फैलाए बैठा है। जितने सुंदर पहाड़ दिखाई देते है वहाँ जीवनयापन उतना ही कठिन और कष्टदायक
है। मूलभूत आवश्यकताओं के अभाव के कारण राज्य में
पलायन एक गंभीर समस्या बन गई है, जिसके आंकड़े दिन प्रतिदिन आसमान छूते जा रहें है।
पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवान कभी पहाड़ों काम नहीं आती। पलायन का यह सिलसिला पिछली दो पीढ़ियों से चलता
आ रहा है। पिछले तीन वर्षों में साढ़े तीन लाख लोगों ने
शहरों की और पलायन किया है और आने वाले सालो में इस संख्या में बढ़ोत्तरी अवश्य ही
होगी। रोजगार, शिक्षा और अच्छी चिकित्सा सुविधाओं की
कमी ने पहाड़ी लोगों को अपनी जन्मभूमि छोड़ने के लिए विवश किया है। राज्य में रोजगार के गिने चुने साधन ही उपलब्ध
है जिनमें पर्यटन सबसे मुख्य है परंतु यह भी केवल छह महीनों तक सीमित है जैसे: चार
धाम यात्रा, नैनीताल, अल्मोड़ा व पौड़ी जैसे हिल स्टेशनों की यात्रा जो केवल अनुकूल
मौसमी स्थिति में की जाती। गर्मियों में के मौसम में तो अच्छी कमाई होती है किन्तु सर्द ऋतु में
व्यापारियों को मक्खी ही मारनी पड़ती है। शिक्षा की बात करें तो साक्षरता दर 78.82 प्रतिशत है, परंतु ग्रामीण इलाकों अच्छी शिक्षा का
अभाव है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चों को 20-30किलोमीटर
की पैदल यात्रा तय करनी पड़ रही है और बारिश के मौसम में और भी चुनौतियों का सामना करके स्कूल पहुँचा जाता है नदी में जल
स्तर बढने के कारण बच्चों के डूबने की घटनाएं भी सामने आई है। उत्तर स्तर चिकित्सा तो यहाँ के लोगों नसीब में
नहीं है आज भी लोगों को इलाज के लिए घरेलू उपचारों के सहारे जीना पड़ रहा है। छोटे मोटे चिकित्सालय भी दूर स्थापित है।
पलायन के कारण खेत बंजर पड़ गए और लोगों के घर खंडरों में तबदील होते जा
रहें है। दुःख इस बात का होता है की हमारे पूर्वजों ने खून पसीना एक कर के पहाड़ों को
काट कर यह सुंदर घर खेत खलियान बनाए थे आज उनकी आत्मा को कही न कही ठेस जरूर
पहुँची है। लोगों को शहरों किराएदार बनकर एक कमरे में रहना
पसंद है परंतु आपने गाव में रहना नहीं। पहाड़ दिन प्रतिदिन खाली होते जा रहें है और धीरे-धीरे हम अपनी इस धरोहर को
अन्धकार की और ले जा रहें है। आज गांव में केवल बूढ़े लोग ही रह गए है जिनकी आँखें भी
अपनो को देखते के लिए तरसती रहती है। अधिकतर
घरों में ताले लग गए है गांव में
इंसानों से ज्यादा जानवरों का वास हो गया है।
हमारी सरकार को पहाड़ी लोगों के लिए रोजगार के अवसर, उच्च शिक्षा और
चिकित्सा प्रणाली पैदा करने की और ध्यान देना चाहिए ताकि पहाड़ी नौजवानों को अपने
घरबार को छोड़कर शहरों की और रुख न करना पड़े. अपनी धरोहर और संस्कृति को बचाए रखाना
सर्वप्रथम कार्य है उसी से हमारी पहचान है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें