" संकट में बाबा केदार की नगरी "

देवभूमि कहे जाने वाला राज्य उत्तराखण्ड आज स्वयं केदारनाथ बाबा से अपनी जिंदगी की भीख मांग रहा हैं। भारी वर्षा से पहाड़ो का जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया हैं। सड़क मार्गो का आपस में संपर्क टूट गया हैं जिसका सीधा असर ग्रामीण क्षेत्रीय लोगों पर पड़ता दिखाई दे रहा है राज्य के कई जिले भारी भूस्खलन की चपेट में आए है। टिहरी जिले में एक गाडी भूस्खलन की वजह से गंगा नदी गिर गई जिसमे सवार तीन लोग अपनी जान गवा बैठे। वहीं दूसरी तरफ चमोली जिले मे पहाड़ का एक टुकड़ा के केदारनाथ मार्ग में आ गिरा जिसमे जानमाल की कोई हानि नही हुई। आपदा प्रबंधन डिपार्टमेंट के अनुसार  वर्ष २०१५ में ३३, २०२० मे ९७२ और इस वर्ष १३२ भूस्खलनो की संख्या दर्ज की गई है 







इस आपदा की वजह से केदारनाथ यात्रा इस इस वर्ष भी अडंगा आ खड़ा हुआ हैं ग्रामीण लोगो के साथ-साथ ही पहाड़ो में फसे पर्यटकों को कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं। यातायात के सभी साधन बंद पड़ गए हैं तथा कई इलाकों में बिजली न आने की समस्या आ खड़ी हुई हैं। पिछले वर्ष की तरह इस साल भी आल वेदर रोड़ प्रोजेक्ट मे भूस्खलन की वजह से रूकावटे आ गई हैं। 


बीते वर्षो में जिस प्रकार पहाड़ो में अंधाधुंध निर्माण कार्य किए जा रहें हैं उनकीं वजह से पहाड़ो की मजबूती व मिट्टी की पकड़ कमजोर होती जा रहीं है और आपदाओं के शिकार हो रहे हें। उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के अनुसार भारतीय प्लेटो का उत्तर की और चीन की तरफ बढ़ने से चट्टानों पर लगातार दवाब पड़ रहा हैं जिससे वह भुरभुरी और कमजोर होती जा रही हैं जिसके फलस्वरूप भुस्खलन व भूकम्प का खरता बढ़ गया है। 

प्राकृति से छेड़छाड़ हमेशा ही मानव जनजीवन को भारी पड़ा हैं।  जिस प्रकार हम प्रोद्योगिक विकास के लालच में पहाड़ो से छेड़छाड़ कर रहें हैं वह दिन दूर नहीं जब हम अपनी इस धरोहर को खो देंगे। सरकार को विकास कार्य के साथ-साथ आपदाओं के रोकथाम व इनसे निपटने के इंतजाम भी करने चाहिए। केदारनाथ यात्रीयों तथा पर्यटकों  को भी इसे समय में उत्तराखण्ड का दौरा नहीँ करना चाहिए 


 


 

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