एहसास बने अलफाज़
* मुट्ठी भर मिट्टी शमशान में पड़ी
ज़रा राख को ज़िन्दगी मौत तक चल पड़ी
* सो गया वो भूखे पेट ही सही
आते है फ़रिश्ते सपनों में रोटी लिए
जब माँ ने ये लोरी में कही
* अलफाज़ों से न इश्क़ एहसासो ने बयां होगा
तेरी रूह से मिलूँगा इसकदर मेरा साया भी तेरा होगा
* सूखी पगडंडी
घर मे अब त्यौहार नही आता
जो शहर की लगी हवा
अब बेटा गाँव नहीं आता
* दौलत की झूठी शान बताती है
शमशान में कफ़न ओर सिर्फ लकड़ी काम आती है
* कोरा कागज़ मिज़ाज़-ए-कलम सख्त लगता है
एहसासो को अलफाज़ों में उतरने में वक्त लगता है
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