पापी पेट



धन्नो वहां मत खेल अगर मटकी टूटी न तो कसम से कमीनी तेरी टांग तोड़ देनी है मेने,
सात महीने की गर्वती सांता ने अपनी दूसरी संतान को दो-चार
गालिया देते हुए डाँटना शुरू किया।
पिछले हफ्ते ही तो जैसे तैसे कर के 2 पैसे जोड़े थे मदनलाल ने मटकी के लिए बाकी ओर था ही क्या घर में एक चूल्हे, दो गिलास,एक थाली ओर ये नई नवेली मटकी के सिवा।
देवी ओर मदनलाल की तीन बेटियां थी कल्लो, धन्नो ओर रानू
ओर चौथी संतान रास्ते लगी थी।
एक पुत्र प्राप्ती की चाहत में मदनलाल को इतने पेटो को पालना पड़ रहा था। कच्ची ईंटो से बना टूटा-फूटा मकान, बरसात में टप टप करती छत्त मानो इंद्र देवता यही बरसे हो बस, एक खाट जिसके पैरो को पोलियो हो गया था, अंधेरे के बीच हल्की रोशन लालटेन, मक्खियों का भिन्न भिन्न करता संगीत घर मे गूंजता, एक फटी चादर, कुछ खाली डिब्बे ये सारी पूँजी मदनलाल के नाम थी।
देवी जो कि पिछले सात महीनों से गर्भवती थी कल रात से पेट मे एक दाना तक न गया था, पूरी रात पेट मे मरोड़ उठता रहा मजाल है को किसी ने पाणी भी पूछा हो। फटी चादर ओढ़े उस खाट पर लेटी है बीच बीच मे मक्खियां तंग कर रही है।
बाकी लोग उबले पानी को चाय समझ पी रहे है सुबह का यही नास्ता है। घर मे खाने को एक दाना भी नही है पिछले एक महीने से गर्म पानी और कभी कभी कही से थोड़ा चावल मिले तो उस से काम चलाया जा रहा है पर परसो से कुछ नही है खाने को चावल देने वाले भी कब तक देगे। अब शाम को बापू कुछ ले आए तो ही चूल्हा जलेगा।
ले पाणी पीले दर्द कम हो जावेगा, आज मालिक के पास जाऊ, दो पैसा उधार मिले तो दवा दारू का बंदोबस्त करु।
कमबख्त के पाँच खेतो में काम किया तो पांच रुपए दिए पिछले बरस ओर उसमे से तीन रुपये पिछला उधार काट लिया। अब दो रुपये में क्या क्या करूँ वो न समझे ये सब जिसपे बीते है वही जाने प्रभु।
इस बार लड़का कर दियो तो बुढ़ापे का सहारा मिल जाए।
(यह सब कहकर वह गमछा टांग बाहर को चल देता है तीनो बच्चियां मा के आस पास लेट कर माँ के आंसू पोछते हुए)
माँ तू रोती क्यों है।
बापू गए है तो आज कुछ जुटा कर ही आएंगे।
रानू जा उस कोने में गुड़ की डली रखी थी परसो मेने पड़ोस की चाची ने दी। जल्दी ले आ कुछ दर्द कम हो जाए मा का तो राहत भली थोड़ी देर ही सही।
(दर्द में कराते हु)
न न तुम तीनो खा लो, मेरा क्या है इतने दिन काट लिए ए हाल में थोड़े दिन और न खाऊँगी तो मर थोड़े जाऊंगी।
(तीनों माँ से लिपट कर सो जाती है)

मालिक बस पाँच रुपये उधार देदो मेरे भगवान।
देवी बच्चा लिए हुए है तीन दिन से कुछ खाया पिया नही। इस हाल में ऐसे रहेगी तो मर जाएगी मालिक मेरे बच्चा भी ले डूबेगी। सारा साल आपके यहां काम कर के रकम अदा कर दूंगा मालिक दया करो मेरे भगवान।
( सेठ लालाराम मदन लाल को लात मारता हुआ)
अरे परे हो तू
क्यों मेरे पैर मैले करता है?
हर साल यही बोलकर अभी तक कर्जा नही चुका पाया है अब तो एक फूटी कौड़ी न दूँ।
तेरी लुगाई मरती है तो मरने दे। मेने कोनसे ठेका ले रखा है सबको पालने का
मर जाएगी तो बला तो टलेगी खाने वाले कम तो होंगे।
मालिक बच्चो की कसम आपकी जूती तले रहूँगा माकिल भगवान भला करेगा।
ए कल्लू बल्लू बाहर फेको इस कीड़े को पता नही कहाँ कहाँ से सिर हो जाते है ।
(रौब से बोलता हुआ) - ये सेठ लालाराम की कोठी है कोई आश्रम नही जो कोई भी अंदर घुस जाए।
(मुछो में ताव देता है और हसंता है) हाहा

दिन बीत चुका है और उधर घर मे दर्द बढ़ता हुआ
ले माँ पाणी पीले बापू आते ही होंगे कुछ लेकर।
आ आ आ आई आई आ आ ( दर्द उठता हुआ)
अब न लगे कि बच पाऊंगी। हाय राम आई रे मौत आई मेरे मौत आई।
बच्चियों माँ के हवा करने लगती है तो बड़ी पानी का गिलास मुँह में लगा पिलाने की कोशिश करती है। दर्द पल पल बढ़ता जा रहा है।
तुम दोनों मा के साथ रहो में काका काकी को बुला लाऊ।
अब दर्द की आवाज़ आना बंद है देवी के मुँह पर मक्खियां भिन्न भिना रही है। आँखे बंद कर ली है और दोनो बच्चियां हवा करते जा रही है।
काकी जल्दी चलो माँ रोवे जाए है दर्द कम न होता
कसम से बापू भी घर न है जल्दी चलो।
एजी जल्दी चलो देवी मर रही दर्द के मारे।
चलो चलो
(चार पाँच ओर लोग भी चल देते है)
अरे कहाँ का दर्द देवी तो आराम से सोई पड़ी खाट पे
अरे कही बेहोश तो न पड़गी
एजी जी देख लो मुझे तो डर लगे है ऐसे में
(मर्द जाते है तो देखते है)
चेहरा पीला पीला पड़ चुका है, सांसे बन्द हो गई है, न धकडक चल रही है।
रे देवी तो निकल गई।
इस हालत में इतने दिन भूखी रहेगी तो मरना ही था।
बड़ा बुरा हुआ साथ एक जान ओर ले गई।
बच्चियां खामोश सब सुन कर आंसुओ से लत पत है।
छोटी बच्ची को तो इन सब बातों से अनजान है उसे भला क्या समझ आना इस सब बातों का मतलब
तीनो माँ से चिपक कर रोने लगती है कि तभी पसीनो में चूर मदनलाल भी दस्तक देता है।
तू अब आ रहा है रे मदनलाल।
कुछ घड़ी पहले ही आ जाता तो मरते मरते देख ही लेती तुझे।
चली गई भगवान के घर भारी पेट लिए बड़ा दुर्भाग्य है रे भाई
मदनलाल की आँखे फटी की फटी रह जाती है वह कुछ न कहने न करने की अवस्था मे रहता है।
उसकी आँखों से जल प्रलय उमड़ पड़ता है सब जन देवी को घेरे रोने लगते है।







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