फैसला

                       भाग-1


बेटा जैकेट रख ली न?
सुना है वहां बारह महीने ठंड पड़ती है। पिछले साल शर्मा जी का लड़का कितना बुरा बीमार पड़ा था दस दिन अस्पताल में पड़ा रहा। मेने काजू, बादाम और किशमिश बड़े वाले डिब्बे में रख दिए है रात को याद से खा लियो वहां पता नही ये सब मिले न मिले घर का खाया रहेगा तो शरीर पर ही लगेगा।
तेरे कपड़े बड़े वाले बैग में है और किताब छोटे वाले थैले में रखी है साथ मे दो गिलास कटोरी चमच प्लेट भी रख दी है क्या पता कौन दिन काम लग जाए।
टिकट पैसे सब रख दिए न तूने? 
हा माँ तू तो ऐसे कर रही है जैसे में ससुराल जा रहा हूं और वापस न आने वाला हु। बस तीन साल की तो बात है और फिर छुट्टियों में आना जाना लगा ही रहेगा। 
बेट माँ का मन है तू नही समझेगा। मैं जी किस के लिए रही हूँ तेरे लिए ही तो।
(माँ की आँखे नम होने लगती है बेटा गले लगाते हुए)
अरे क्या तू भी रोने लगी है। अच्छे काम मे रोते नही है।
ठीक है बाबा नही रोती। सुईया भागती जा रही है सात बज गए है जल्दी जल्दी सामान बांध लें आठ बजे की बस है। टैक्सी वाला आता ही होगा।

"पी पी" टैक्सी की आवाज़ ने दस्तक दी
रेखा जी ने राकेश का बड़ा बैग उठाया और राकेश को छोटा थमा दिया। आज जैसे कदम चलने को राजी ही न हो रहे हो।
वह न चाहते हुए भी खुद आगे धकेलने में सफल रही। बरसो से वह राकेश के बिना कभी अकेली न रही थी। पति की दस साल पहले मृत्यु हो जाने के बाद रेखा ने हर सवेरा केवल राकेश के सहारे ही देखा था। बड़े दुख दर्द झेले थे उसने राकेश के लिए आज तक। वह पिछले कुछ दिनों से यही सोचती परेशान थी कि बिना बेटे के रोटी का निवाला भी कैसे जाएगा गले मे ओर राकेश भी तो कभी बिना माँ के न रहा था। इन विचारों के बीच वक्त निकला जा रहा था 
राकेश "माँ" किस सोच में है देर हो रही है इधर दे ये बेग ओर गाडी में रख देता है।

माँ के चरण स्पर्श करता हुआ ' अच्छा माँ अपना ध्यान रखना और समय कर खाना पीना सोना मेरी चिंता की ज़रूरत नही में कोनसा जंग लड़ने जा रहा हूँ और साथ साथ खत भेजता रहूँगा।
वह जानता है कि रो पड़ा तो माँ की आखों में बाढ़ आ जाएगी इसलिए खुद को सम्हाल लेता है।
हाँ तू अपना ध्यान रखियो अगर कुछ कम पड़े तो बता दियो में भेजती रहूंगी पार्सल से तुझे खुद की भी फिक्र नही होती पता नही कैसे करेगा मेरे बिना वहां सारा काम।
रेखा की आँखे हकली सी नम है आवाज़ थोड़ी भारी हो गई है दर्द उसके गले से बयां हो रहा है।
टेक्सी वाला हॉर्न बजा कर संकेत देता है कि वक्त हो चला है और राकेश टैक्सी में बेठा निकल पड़ता है ज़िन्दगी के नए सफर पर।
टैक्सी ड्राइवर 'भैया कहाँ को जावत हो? कोन्हों दूर जावत लगत हो? जबी माजी इतना दर्द में बोली।'
तीन साल की पढ़ाई के लिए पहाड़ो की रानी जा रहा हूँ।
ई पहाड़ो रानी कोनो जगह है कबी सुनत नाही हम भैया??
राकेश एक हल्की मुस्कान के साथ 'मंसूरी' जा रहा हूँ।
उत्तराखंड की वादियों में बसा एक हिल स्टेशन है।
वाह भैया तोहार तो किस्मत चमकेला पहाड़ो में रहोगे आहा।
बातों बातों में कब कश्मीरी गेट आ गया पता नही लगा।

'ट्रिंग ट्रिंग' हेलो माँ 
हाँ मैं बस में बैठ गया हूँ खड़की वाली सीट भी मिल गई।
बेटा रास्ते मे किसी का दिया मत खाना आजकल भलाई का ज़ामाना नही और टिफिन में पकोड़े रखे है और चाय भी है थरमस में भूखे मत रहना आराम से जाना। 
रेखा को तो आज नींद भी नही आने वाली थी। आज सिर्फ आधी रोटी उतरी थी हलक से नीचे जैसे चिंताओं ने उसकी भूख को खा लिया हो। रात भर उसने केवल करवटे ही बदली।
उधर राकेश खड़की की सीट पर बेठा उस रात के सफर का भरपूर आंनद ले रहा था। भुट्टो के लदे खेत, ए. सी से  भी ठण्डी हवा और बस में चलते पुराने गाने और वह मन ही मन उनको गुनगुनाता रहा मगन होकर।
पूरे आठ घण्टे का सफर तय हो चुका था। आसमान से काली चादर हटने लगी थी। रोड़ पर मोड़े आने शुरू होने लगी यह सब राकेश के लिए नया अनुभव था वह पहली बार पहाड़ पर चढ़ाई करन रहा था। निक्कमा पेट ऐसा घूमा की सारे पकोड़े चाय खिड़की के रास्ते बाहर कूद पड़े मानो इसी लिए उसकी किस्मत में यह खिड़की वाली सीट मिली हो। करीबन दो घण्टे के सफर के बाद गाड़ी रुकी। वह अब हल्का हल्का कांपने लगा यहाँ से मौसम बेईमान होने लगा था। जैसे ही वह सामान उतार कर नीचे उतरा- 'ऊ शाब जी' पाँच रूपया में ऊपर तक छोड़ देगा में समान भौत भरी लगता।

  1. थके हारे को क्या चाहिए एक सहारा ओर बहादुर ने यह किरदार बखूबी निभाया छोटे कद के बहादुर ने फट से सारा सामान अपनी पीठ पर लाद दिया और मंसूरी टैक्सी स्टैंड तक बड़े आराम से खुशी से रख दिया।
रमेश का फोन बजा  कहाँ तक पहुँचा?
हाँ माँ मंसूरी टैक्सी स्टैंड में खड़ा हूँ।
सफर में कोई परेशानी तो नही हुई न इर तूने चाय पकोड़े खा लिए न?
नही आराम से आया और पकौड़े भी आराम से पच गए।
वहां ठंड होगी जैकेट पहन लेना।
हा माँ हाँ होस्टल पहुँच जाने दो फिर आपको लगता हूँ फोन।
ठीक है बेटा आराम से जाना।
"हिमालयन बॉयज होस्टल" में आपका स्वागत है का बोर्ड पढ़ते ही उसे राहत मिली आने वाले तीन वर्ष राकेश को यही बिताने थे। वार्डन से अपने कमरे की चाबी लेकर वह सीधा कमरे में जा पहुँचा। 
कमरे का गेट आहे बेड उसके आगे खिड़की ओर वहां से दूर दूर तक दिखती हिमालय की वादियों ओर नीचे घाटी में बसा छोटा सा शहर देहरादून।
ये प्रकतिक सौंदर्य देखकर मानो उसे लगा वह स्वर्ग में आ गया हो।
वाह क्या जगह है, ये नज़ारा ये फ़िज़ाए यहाँ तो मै पूरी ज़िन्दगी काट लू।
'जन्नत है जन्नत'
इतना सब कहकर वह वह बिस्तर पर आँख बंद कर के पसर गया। उधर रमेश का फोन बजता रहा लगभग पंद्रह बार कॉल आई पर वह तो घोड़े बेच बेसुध बिस्तर पर पड़ा रहा।
आँख खुली तो देखा दिन के ग्यारह बज गए है और माँ की पंद्रह मिसकॉल बड़ी चिंता में होगी।
(कॉल करता है माँ को)
वाह बेटा शहर क्या छोड़ा तू तो माँ को एक रात में ही भूल गया। इतनी कॉल की मजाल है जो तू उठा ले।
वह सब बातें माँ को समझता है और संवाद समाप्त हो जाता है।
दिन को खाने के लिए मेस में जाता है और वही मुलाकात होती है पहले नए मित्र शिवांक थपलियाल से। स्थानीय पहाड़ी लड़का, दूध सा गोरा रंग, अच्छा खासा कद,सुंदर दर्शन,चेहरे पर मुस्कान ओर बात बात पर बल बोलना उसका स्वभाव था।
दोनो के लिए यह होस्टल नया था जगह नई थी और किस्मत से दोनों का कमरा भी एक ही था। मानो दो बैलों की जोड़ी हो।
देर बात चीत करने के पश्चात विचार बनता है आज शाम मंसूरी बाज़ार घूमा जाए। सूरज के सोते ही दोनो नव युवक सज सवर कर निकल पड़ते है सैर पर।
मंसूरी की शाम बड़ी भीड़ भाड़ वाली होती है। अंधेरे में चमकती दुकाने चम चम जैसे रास्ता दिखती हो। ठंडा मौसम अगल-बगल भुट्टे की दुकाने, दर्जनों में सेनानी, वो गांधी चौक में लोगों का जमावड़ा ओर नीचे दूर चमचमाता देहरादून मानो आसमान धरती पर आ गया हो और देहरादून का हर घर एक तारे के भांति उज्ज्वल हो।
दोनो मित्र माल रोड पर मस्ती से अपनी बातों में व्यस्त न उनको आगे दिखता है पीछे कई बार इधर उधर लोगो से कंधे लग जाते है। पर उनको क्या कौन क्या गाली देता जा रहा है वह अपनी धुन में आनंदमय यात्रा पर है।
आगे मोड़ पर भुट्टे दुकान पर दोनो के कदम रुकते है। वह जैसे ही ठेले के पहुँचते है दूसरी छोर से तीन लड़कियों का एक ग्रुप भी भुट्टे की तलाश में आ जाता। रमेश ओर ग्रुप की सबसे सुंदर कली दोनो साथ एक भुट्टे को एक एक छोर से पकड़ लेते है। यहाँ आज शाम का आखरी भुट्टा है जो शायद जंग लड़ रहा है। किसकी किस्मत में जायेगा ये भुट्टा?
आगे की कहानी अगले भाग में

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