फैसला

                               भाग-2

भुट्टा बड़े असमंजस स्थिति में था। दो हाथों के बीच अपनी सांसो के लड़ रहा बिचारा भुट्टा छटपटाने लगा। रमेश ने जैसे ही लड़की के हाथों का मर्म एहसास किया झट्ट से अपना हाथ पीछे ले लिया।
लड़की ने तिरछी नज़रो से उसकी ओर देखा मानो उसको शुक्रिया कह रही हो।
यह दृश्य देख कर लड़कियों का झुंड खिलखिलाने लगा और अपनी जीत पर जश्न मनाने लगा।
रमेश ने अपने कदम पीछे ले लिए ओर शिवांक को चलने का इशारा किया और दोनो जन वहां से चलते बने।
अरे भैजी क्या आप भी एक भुट्टा नही ले पाए।
वो लड़किया देखा कितना चहक रही थी।
पर रमेश को इस बात का बुरा नही लगा क्योंकि उसने मन मे तो कुछ और ही चलने लगा था। 
कोई नही बंधु भुट्टा न सही आज छोले ही सही।
सैर के बाद दोनों वापस अपने कमरे में लौटे। थके हारे दोनो बिस्तर पर लेटे ओर शिवांक की कुछ ही क्षणों में आँख लग गई परंतु रमेश की आँखों मे नींद कहाँ वह तो उन लम्हो से ही नही निकल पाया बार बार लड़की की छवि उसके सम्मुख आती रही।
देर रात करीबन एक बजे उसकी भी आँखे थक गई और वह भी निंद्रासन में विलीन हो गया।

अगली सुबह आँखे खुली तो सामने शिवांक चाय और ब्रेड लेकर खड़ा था।
 यहाँ माँ के हाथ की रोटी कहाँ मिलने वाली थी अंग्रेजो के शहर में अंग्रेजी नास्ता ही परोसा जाता है।
लो तुम्हारा नास्ता साहब जी
लाल आँखे लगता है किसी की यादों में देर रात तक सोए नही मित्र?
रमेश में हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया
अरे ऐसा कुछ नही नया शहर है न तो नींद देर में आयी।
हांजी शहर के साथ साथ लोग भी नए है लगता है कल शाम मोहतरमा.....
यह कह कर शिवांक ने बात एक प्रश्नचिह्न के साथ अधूरी छोड़ दी।
आज कॉलेज के पहला दिन था दोनो नव युवक सज सवर कर निकल पड़े। होस्टल से कॉलेज की दूर करीबन एक किलोमीटर की थी तो दोनों ने ग्यारह नम्बर की गाड़ी से जाने का तय किया। दस मिनट का यह रास्ता कब पूरा हो गया बातों बातों में पता ही न लगा।
उन दिनों चारो ओर कोहरा लगा रहता था मंसूरी में जून की गर्मी में भी ऐसा ही ठंडा मौसम रहता था दूर दूर पहाड़ियों में लगा कोहरा मानो किसी ने ऊप्पर से बर्फ गेर दी हो।
हिमालयन कॉलेज बड़ा बड़ा दूर से ही लिखा नज़र आ रहा था। दोनो के ही मन मे बड़ा उत्साह था और हो भी क्यों न नई कक्षा में जाने का सुख ही अलग है और जब क्लास के साथ साथ स्कूल भी बदल जाए तो यह आंनद दुगना हो जाता है।
अंग्रेजो के ज़माने का यह कॉलेज किसी महल की भाँति ही दिखता था। बडी बडी इमारत ओर साथ मे बालकोनी वहां से चारो ओर प्रकृति का नज़ारा देखते ही बनता था।
 (दोनो कॉलेज के द्वार से भीतर जा चुके है)
बी फ़ॉर सैकंड फ्लोर कहाँ होगी?
वो सबसे ऊप्पर कोने वाली क्लास पर लिखा है भैजी वही होगी
जल्दी करो कही पहले ही दिन डांट न पड़ जाए रमेश में कहा
में आई कम इन मेमे(दोनो एक स्वर में)
अध्यापिका ने हा में सिर हिला कर आदेश दिया
पूरी क्लास खचा खच्च भर गई थी आखिर में कुछ डेस्क दोनो के नाम हुई।
चलो अब सब एक एक कर के अपना परिचय देंगे
अध्यापिका में आदेश दिया।
सबसे पहली सीट पर बैठी लड़की जिसका चेहरा देखना रमेश ओर शिवांक के लिए असम्भव था दोनो पीछे जो बैठे थे।
लड़की ने पलती से आवाज़ में बोलना शुरू किया
मै रेशमा, सेंट हाई स्कूल देहरादून से इंटर पास, रहने वाली बिजनोर से हूँ, लिखने ओर घूमने में रुचि रखती हूं।
लड़की ने अपना परिचय समाप्त करते ही एक नज़र पीछे क्लास की ओर दौड़ाई तो दोनों दोस्तो की आँखे खुली की खुली रह गई।
ये ज़रूर कोई करिश्मा ही हो सकता है रमेश मन ही मन सोचने लगा।
कल से जिसकी छवि उसके मन मस्तिष्क में चली आ रही है आज वो उसके सामने ही है और परिचय बिन मांगे ही मिल गया। आज शायद उसकी किस्मत सोने की कलम से लिखी गई होगी।
इस सब सोच विचार के अंतराल उसके मुख ओर जो भाव उत्तपन्न हो रहे थे शिवांक भी उनको पढ़ने में सक्ष्म था। वह जानता था कि परदेसी बाबू पहली नज़र में घायल हो चुके है।
क्या बात है ये चेहरा इतना कैसे खिला रहा है अचानक
किसका चेहरा शिवांक??
अजी रामायण खत्म हो गई और आप पूछ रहे सीता कौन है।
भैजी ये चेहरा सब बयाँ कर रहा है कि सुबह आँखों मे नींद क्यों रात में बेचैनी क्यों?
ओर दोनो साथ मे हँसने लगते है।
(इस अंतराल में कक्षा समाप्त हो जाती है और आधे बच्चो का परिचय रह जाता है)
पहली नज़र में शिकार हुए आशिक को ओर क्या चाहिए सिर्फ उस चहरे का दीदार। प्यार नही वह तो अभी दूर की बात थी हा आकर्षण तो हो चुका था।
एक रात में इतना कुछ हो चुका था पर रमेश ने माँ को अब तक इस विषय मे कुछ नही बताया था। शायद ऐसे मामलों में वह समझदार था उसे किसी बात की जल्दी न थी।
चलो भैजी क्लास खत्म हुई अब क्या पूरे दिन यही बेठना है??
हाँ चलो चलो
कहते है इश्क के रोग का इलाज नही रमेश बाबू जरा समहल कर
तू भी क्या हर वक्त वक्त मज़ाक करता रहता है किसे हुआ है इश्क भला
हुआ तो नही पर यूही रात जागते रहोगो तो वो दिन भी दूर नही
इस संवाद के साथ दोनो कॉलेज से बाहर निकलने लगते है।
बाहर खड़े दोनो जीप का इंतज़ार करते है कि तभी....

आगे की कहानी अगले भाग में


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