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      पलायन का शिकार पहाड़ी नौजवान “ सड़क अब पहुँची तुम गांव मेरे जब लोग शहर चले गए । “ रोटी, कपड़ा और मकान यह तीन मनुष्य जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ है, जिनके बिना जीवन असंभव है । वर्ष 2000 में बने राज्य उत्तराखण्ड आज स्वयं बाबा केदार के आगे हाथ फैलाए बैठा है । जितने सुंदर पहाड़ दिखाई देते है वहाँ जीवनयापन उतना ही कठिन और कष्टदायक है । मूलभूत आवश्यकताओं के अभाव के कारण राज्य में पलायन एक गंभीर समस्या बन गई है, जिसके आंकड़े दिन प्रतिदिन आसमान छूते जा रहें है । पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवान कभी पहाड़ों काम नहीं आती । पलायन का यह सिलसिला पिछली दो पीढ़ियों से चलता आ रहा है । पिछले तीन वर्षों में साढ़े तीन लाख लोगों ने शहरों की और पलायन किया है और आने वाले सालो में इस संख्या में बढ़ोत्तरी अवश्य ही होगी । रोजगार, शिक्षा और अच्छी चिकित्सा सुविधाओं की कमी ने पहाड़ी लोगों को अपनी जन्मभूमि छोड़ने के लिए विवश किया है । राज्य में रोजगार के गिने चुने साधन ही उपलब्ध है जिनमें पर्यटन सबसे मुख्य है परंतु यह भी केवल छह महीनों तक सीमित है जैसे: चार धाम यात्रा, नैनीताल, अल्मोड़ा व पौड़ी...